जिस मनुष्य में होते हैं ये 5 दोष, सुख भोग कर भी नहीं होते हैं सुखी

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मनुष्य के अंदर हर पल कुछ नया पाने की या कुछ नया करने की लालसा बनी रहती है. इसी जिज्ञासा की बदौलत वह इंसान सुखी या दुखी रहता है. महात्मा विदुर महाभारत काल के सबसे बड़े बुद्धिजीवियों में से माने जाते थे. ये कुशाग्र बुद्धि के होने के साथ-साथ महान विचारक व दूरदर्शी भी थे. विदुर धृतराष्ट्र और पांडु की तरह ही ऋषि वेदव्यास के पुत्र थे, परंतु इनका जन्म एक दासी के गर्भ से हुआ था इस कारण ये राजा नहीं बन पाए. ये हस्तिनापुर के महामंत्री थे. विदुर के बारे में कहा जाता है कि ये समय से पहले ही आने वाली परिस्थितियों को भांपने में सक्षम थे. महाभारत के युद्ध से पहले ही विदुर महाराज धृतराष्ट्र को युद्ध परिणामों के बारे मे अवगत करवा दिया था.

विदुर और महाराज धृतराष्ट्र के बीच का संवाद विदुर नीति के रूप में जाना जाता है. विदुर के द्वारा बताई गई बातें आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय हुआ करती थी. यदि विदुर की नीतियों का अनुसरण जीवन में किया जाए तो कई तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है. इसके साथ ही जीवन को सुखी बनाया जा सकता है. विदुर नीति में विदुर जी ने बड़े स्पष्ट शब्दों में यह बताया है की व्यक्तियों के अंदर 5 दोष मौजूद रहते हैं. अगर वह अपने इन दोषों को दूर कर लें तो वह जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है. अन्यथा उस व्यक्ति के जीवन में सुख सुविधा होते हुए भी व व्यक्ति सुखी नहीं रहता है. तो चलिए जानते हैं इन दोषों के बारे में.

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क्रोध

क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है. वह व्यक्ति जो क्रोधी होता है उसके अंदर बुद्धि कम होती है. वह व्यक्ति अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाता है. जिसके कारण वह सदैव दुखी रहता है.

ईर्ष्या

विदुर नीति के अनुसार ईर्ष्या मनुष्य का सबसे बड़ा दोष है. जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है वह अपने आप को हिन समझता है. वह व्यक्ति कभी भी खुश नहीं रह पाता है. वह दूसरों को देखकर हमेशा जलता रहता है.

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असंतोष

विदुर के कथन अनुसार जिस व्यक्ति के अंदर संतोष नहीं होता है वह व्यक्ति हमेशा दुखी ही रहता है क्योंकि जीवन में हर समय बदलाव होता रहता है. मनुष्य को सभी चीजें प्राप्त नहीं हो सकती हैं.

शक

विदुर के अनुसार शक मनुष्य का सबसे बड़ा दोष है. जो मनुष्य सभी को संदेह की दृष्टि से देखता है, वह व्यक्ति जीवन में कभी सुखी नहीं रहता है क्योंकि उसके अंदर हमेशा डर की भावना बनी रहती है.

घृणा

घृणा मनुष्य का जन्मजात दोष है. हर व्यक्ति किसी न किसी बात से घृणा करता है. विदुर नीति कहती है की जो व्यक्ति अपने समाज से, अपने सहयोगियों से या अपने अंदर के भावों से घृणा करेगा तो उसका जीवन कभी भी सुखी नहीं रहेगा.

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