जब हम टीवी देखते हैं या अखबार पढ़ते हैं तो हमें एक विज्ञापन अक्सर नज़र आता है और वह विज्ञापन है ‘घड़ी डिटर्जेंट’ का. इसके विज्ञापन के साथ एक चर्चित टैगलाइन भी आती है. ‘पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें,’ ये लाईनें हर बच्चे और बड़े के मुँह पर रहती है, क्योंकि यह है ही इतनी प्रसिद्ध टैगलाईन और यही नहीं बल्कि जिस ब्रांड के लिए यह टैगलाईन बनाई गई है यानी ‘घड़ी डिटर्जेंट’ उसे भी लोग बहुत पसंद करते हैं.
कई दशक पहले ‘घड़ी डिटर्जेंट’ भारत के बाज़ार में उतरा था. इस कंपनी के अनुसार जिन भी लोगों ने घड़ी डिटर्जेंट को इस्तेमाल किया, उनका विश्वास इस पर अब तक बना हुआ है.
आपको बता दें की घड़ी डिटर्जेंट तो लोकप्रिय है ही, लेकिन इसके बनने की शुरुआत और बाज़ार में अपनी जगह बनाने की कहानी भी बहुत रोचक है. चलिये हम आपको इसकी कहानी से रूबरू कराते हैं.
दो भाईयों ने मिलकर की थी ‘घड़ी डिटर्जेंट’ की शुरुआत
‘घड़ी डिटर्जेंट’ बनाने की शुरुआत 1987 में कानपुर के शास्त्री नगर में रहने वाले मुरलीधर ज्ञानचंदानी और उनके छोटे भाई बिमल ज्ञानचंदानी ने मिलकर की थी कानपुर के शास्त्री नगर से ही इनकी ज़िन्दगी का सफ़र शुरू हुआ था. इन्होंने पहले फजलगंज फ़ायर स्टेशन के पास में अपनी एक डिटर्जेंट की फैक्ट्री खोली थी. हालाकिं फजलगंज स्थित फैक्ट्री छोटी थी, लेकिन उन दोनों भाईयों के हौसलें बहुत बड़े थे. वे दोनों ही अपनी मेहनत और हिम्मत के बल पर इस कंपनी को आगे बढ़ाने में लग गए. उस वक़्त उन्होंने शहर में जो डिटर्जेंट फैक्ट्री खोली, उसका नाम उन्होंने ‘श्री महादेव सोप इंडस्ट्री’ रखा. उस समय इस फैक्ट्री में घड़ी साबुन बनाए जाने लगे. शुरुआत में दोनों भाइयों ने पैदल या साइकिल से घरों, मोहल्लों और दुकानों में साबुन पहुँचाने का काम शुरू किया. हालाँकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं मिला फिर भी दोनों भाईयों ने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुटे रहें. फिर उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपने डिटर्जेंट की ब्रांडिंग को तेज किया. उस समय उनकी ब्रांड ‘घड़ी डिटर्जेंट’ के सामने कई प्रतिद्वंदी कंपनियाँ थी, जिनमें ‘निरमा’ तथा ‘व्हील’ जैसे बड़े ब्रांड भी शामिल थे. उस समय बाज़ार में पहले से ही दिग्गज कंपनियों का वर्चस्व था. ऐसे में इन दिग्गज कंपनियों के बीच दोनों भाइयों के सामने अपने उत्पाद को बेचने की चुनौती थी. इन हालातों में एक नई ब्रांड का आगे निकलना बहुत मुश्किल था. फिर मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी अपनी ब्रांड को लोगों के समक्ष एक अलग तरीके से लेकर आए.
अपने टैगलाईन से प्रसिद्ध हुआ यह ब्रांड
उस समय ज्यादातर डिटर्जेंट पीले अथवा नीले रंग में बनाए जाते थे लेकिन उन्होंने सबसे अलग अपनी ब्रांड का डिटर्जेंट सफ़ेद रंग का बनाया. घड़ी डिटर्जेंट की खासियत यह थी की इसकी क्वालिटी अच्छी थी तथा मूल्य भी कम था. सबसे ज्यादा अनोखी इसकी टैगलाइन थी- ‘पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें’. इस टैगलाइन के साथ जब यह डिटर्जेंट बाज़ार में आया तो खूब लोकप्रिय हुआ. ऐसे में बाज़ार में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी ने अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश के मार्केट में अपनी जगह बनाई उसके बाद दुसरे राज्यों में भी इसका प्रचार-प्रसार किया.
मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच ‘घड़ी डिटर्जेंट’ बना एक पसंदीदा ब्रांड
मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी ने विक्रेताओं को लुभाने के लिए उन्हें दूसरी कंपनियों के मुकाबले ज्यादा कमीशन देना शुरू किया. ज्यादा कमीशन के चलते नुकसान से बचने के लिए उन्होंने हर 200-250 किलोमीटर पर एक छोटी यूनिट या फिर बड़ा डिपो बनाने की रणनीति अपनाई. इससे ट्रांसपोर्ट का खर्च और अन्य दुसरे खर्च भी कम हो गए. इस प्रकार से कुछ ही समय में मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच ‘घड़ी डिटर्जेंट’ एक पसंदीदा ब्रांड बन गया. धीरे-धीरे कर के लगभग हर घर ने ‘घड़ी डिटर्जेंट’ पर विश्वास किया और इसे अपनाया.
अब दोनों भाई हैं करोड़ों के मालिक
वर्ष 2005 में इस कंपनी ने अपना नाम बदल कर RSPL कर दिया और अब तो इसका नाम पूरे विश्व की सबसे बड़ी ब्रांड्स में शामिल है. आज ‘घड़ी डिटर्जेंट’ भले ही पूरे देश में छाया हुआ है लेकिन कभी इसकी शुरुआत बहुत छोटे स्तर से हुई थी. घड़ी समूह के मालिक मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी ने अपनी मेहनत और लगन से एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया है. एक छोटी सी फैक्ट्री से शुरुआत करने वाले ये दोनों भाई आज 13 हज़ार करोड़ रूपए से भी अधिक की प्रॉपर्टी के मालिक हैं. कई वर्षों से यह ब्रांड लोगों को कम मूल्य पर अच्छी क्वालिटी का डिटर्जेंट उपलब्ध करवा रहा है, यही वजह है की लोग आज भी इसे इतना पसंद करते हैं.
अब देश के 100 सबसे अमीर उद्योगपतियों में हैं शामिल
साल 2013 में फ़ोर्ब्स इंडिया ने मुरलीधर ज्ञानचंदानी और उनके छोटे भाई बिमल ज्ञानचंदानी को देश के 100 सबसे अमीर उद्योगपतियों में 75वां स्थान दिया था. उस समय इनकी संपत्ति करीब 13 हज़ार करोड़ रूपए थी. मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी की सफलता की दास्तां से यह सिद्ध हो जाता है की सही तरीके से धैर्य रखकर और कड़ी मेहनत करके जब कोई काम किया जाता है तो उसमें मनुष्य को कामयाबी जरुर मिलती है.